घर था किराए का कहां था ठिकाना । एक न एक दिन था हमको भी जाना। वो मकाँ ऊपरवाले का बड़ा है विशाल। देखी न हमने वैसी मिसाल। जिस ठिकाने से कभी कोई वापस न आए । जो जाएं वहाँ , वहीं का हो जाए। सभी धर्मों के लोग जाते वहां हैं। बैर छोड़े यहां , संग रहते वहाँ हैं। न रहे अपनी काया मगर उसकी छाया। उसका मकाँ सबको है कितना भाया। थोड़े समय का था ; संग जो तुम्हारा बस वही तो रहा संग, उपहार तुम्हारा।✍️
“The shelter in rent “ ——–– The house was in rent we lived. One or the other day we had to leave. GOD in heaven , has so huge temple haven’t we seen such an example. From where ever no one comes back. who go there takes complete rest. people of all world go there. and leave their hate all here, when they realize same the parent God is there. So the souls live united there. Under His kind grace shadow, the heaven looks like a green meadow. How much we loved, during rent house time, will be always with me as a rhyme.✍️
सच जीवन ,जब भावहमारे , लेकर बढ़ता है । दुख भी तन्हा नहीं रहा , वो हंस कर कहता है। “सुख” ,फूलों सी बारिश है और देवों सा एहसास। अपनों का अपनत्व रहे , जब अपने आस पास । जीवन झरना भावों का है ।बहता जाता है । इंद्र धनुष से रंग लिए धुन अपनी कहता है । कभी बना “बच्चन- मधुशाला” कभी “नीरज” बन बहता है। ✍️
माँ ने ऐसा feed किया , कुछ दूध में अपने घोल कर । सबकी चिंता रही उसे, बस अपनी चिंता छोड़ कर । अक्सर बेटी त्याग- भाव में, कितना कुछ कर जाए। “नारी तुम केवल श्रद्धा हो”, इस पथ को अपनाए ।
सिद्दार्थ छोड़ घर से जब निकले, गौतम बुद्ध बन आते और यशोधरा कहती चिंतित हो “सखी वो मुझ से कह कर जाते ।” पुत्र की भिक्षा दे गौतम को, खड़ी वो हाथ को जोड़कर । माँ ने ऐसा feed किया , कुछ दूध में अपने घोल कर….. राम की अर्धांगिनी बन सीता, वन – वन साथ निभाए । आदर्श पुरुष बन गए राम, पर सीता धरा समाए । पुत्रों का संग पाकर पी गई, जीवन के सब दुख घोल कर । माँ ने ऐसा feed किया, कुछ दूध में अपने घोल कर ….. सत्यवान की चिंता में, सावित्री ने शक्ति लगाई, पति की उम्र बढ़ाने को , वो यम के पीछे आई। थकी नहीं वो कन्या तब तक, विजय ना पाई मौत पर, माँ ने ऐसा feed किया , कुछ दूध में अपनने घोल कर …..
मेवाड़ की पन्ना धाए को, इतिहास भुला ना पाए। रानी का वचन निभाने को, सुत अपना अर्पण कर आए। अश्रु नयन में थाम खड़ी वो, जैसे फूल हो शूल पर। माँ ने ऐसा feed किया, कुछ दूध में अपने घोल कर…..
झांसी की रानी भी रण में, बिगुल बजा कर आई, पर वो माँ थी, पुत्र की चिंता, उसके दिल में छाई। बांध पीठ पर पुत्र को अपने, चली युद्ध घुड़दौड पर। माँ ने ऐसा feed किया, कुछ दूध में अपने घोल कर…..
इंदिरा ने भी देश की चिंता, में थी जान गवाई, माँ की इकलौती बेटी , दुर्गा अवतार में आई। दे गई खून का हर इक कतरा, देश प्रेम में तोल कर । माँ ने ऐसा feed किया ,कुछ दूध में अपने घोल कर ….. सदी बीसवीं में बेटी ने , माँ की छवि थी पाई। मदर टेरेसा नाम से महिला, दुनिया भर थी छाई। सेवा- भाव को लेकर आई , सीमाएं सब तोड़ कर। माँ ने ऐसा feed किया कुछ दूध में अपने घोल कर….. अपने देश की एक कल्पना , थी आकाश में छाई । विज्ञान के रथ में बैठ के वो, ऊंची उड़ान पर आई। अपनों के मिलने से पहले, वो सो गई यादें छोड़कर। माँ ने ऐसा feed किया, कुछ दूध में अपने घोल कर, सबकी चिंता रही उसे, बस अपनी चिंता छोड़ कर। माँ का दिवस है माँ मेरी भी क़लम रूप में आईं । माँ के हर शब्दों में वो ही सरस्वती बन कर छाईं। न जाने माँ की शक्ति बिन जीवन होता किस मोड़ पर। माँ ने ऐसा feed किया कुछ दूध में अपने घोल कर, सबकी चिंता रही उसे बस अपनी चिंता छोड़ कर।✍️
जीवन इक उम्र में गंगा के बहाव सा …..उसमें लगी एक डुबकी सा….. जिस में नाक बंद कर डुबकी लगाते ही पल भर में बाहर निकल आते हैं हम …. पानी बह जाता है आगे….. माँ पिता के छूट जाने जैसा …. बस भीग जाते हैं हम…. साथ आया वो गीलापन… वे पानी की बूंदें….. भाई – बहन के साथ जैसा….. इस उम्र में ये निस्वार्थ रिश्ते बहुत याद जाते हैं। …✍️
कितना सुंदर देश ये मेरा। कितना खूब था यहाँ सवेरा । कहीं अज़ान, कहीं भजन थे । कहीं चर्च की थी घण्टा ध्वनि, कहीं पे भक्ति की थी धूनी ।
देश में था इक भाई चारा, गाँधी विचार की बहती धारा। जब भी दुश्मन ने ललकारा, सबने मिलकर उसे नकारा। देश में था मिलजुल कर पहरा, रिश्ता था आपस में गहरा।
क्या देश नहीं था अपना न्यारा ? जब भी जो सत्ता में बैठा, ना जाने क्यों रहता ऐंठा। पहने जो शक्ति का ताज, बहुत इन्हें अपने पर नाज़। कुछ की बुद्धि है भरमाई, घर में अपने आग लगा कर, खूब बजाते ताली भाई।
सत्ता को पाने के खातिर, कैसे खेल करें ये शातिर । आपस में जनता लड़वाएं । वर्षों से उन को भिड़वाएं। देश में अराजकता है आई। फिर भी समझें क्यों नहीं भाई?
क्या देश नहीं तुमको ये प्यारा ? क्यों करते इसका बंटवारा ?
भारत माँ भावों का बंधन, क्यों हो कुछ लोगों का क्रंदन? बाबा हरभजन की आत्मा अब भी देश में देती पहरा। अब्दुल हमीद के देश प्रेम ने पाक के नौ टैंकों को घेरा।
ये देश प्रेम तुम्हें है नहीं गवारा क्या देश नहीं तुमको ये प्यारा ? क्यों करते इसका बंटवारा ?
जब रोटी से मैसेज जाते थे।
हिदू मुस्लिम सिख ईसाई आपस में सब मिल जाते थे। दुश्मन से जा टकराते थे । आज ये कैसा है दिन आया। एक दूजे को नीचा करने Fake एक campaign चलाया। देश को इन संग मिल तोड़ोगे माँ को कहीं क़ा न छोड़ोगे । क्या माँ से नहीं है प्यार तुम्हारा ? अब स्वयं सोचो तुम भाई, अपना सर खुद ही मुड़वा कर, तुम खुद के बन बैठे नाई।✍️
काफिर हो या तू मोमिन एक दिन तो जाएगा। एक जाए अग्नि रथ में, दूजा जमीं में समाएगा । फूलेगा फूंकना तब तक जब तक हवा है तुझमें बाद में तो आत्मा या रूह कहलाएगा। पानी को ‘आब’ कह ले या आब को तू पानी प्यासे से कुछ भी बोल, वो तो प्यास अपनी, इसी से बुझाएगा। कहले खुदा तू उसको या कहले तू उसको ईश, अपनी मति से वो तो, तुझको नचाएगा। मस्ज़िद में बांघ दे तू या मन में शिवालय खोल। ”आबिद’हो या हो भक्ति नशा इक सा छाएगा। इस नशे में तू जरा झूम के तो देख उपरवाला तुझको इक सा नज़र आएगा।✍️
सच में तिरंगा कितना प्यारा। हम सबको ये लगता न्यारा। हरा रंग हरियाली देता । शांत ‘श्वेत रंग’ मन को करता । केसरिया कितना बल भरता। चक्र हमें चलने को कहता । भारत माँ का राज दुलारा। हमें तिरंगा कितना प्यारा। ✍️ ,🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳
जैसे जैसे उम्र है निकली रिश्ते बिखर गए। जैसे जैसे उम्र बड़ी तो वो भी निखर गए । झूठे सपने पाल रहे थे। जो अब उनको साल रहे थे। सपने और उनके अपने भी जाने किधर गए…. जैसे जैसे उम्र है निकली रिश्ते बिखर गए।
विधि के विधान का लेख है अपना, “आज रहे जो “कल हो सपना” पल भर के अपने सपने निंद्रा में इधर रहे। नींद खुली तो तन्द्रा में , वो भी बिफर गए। जैसे जैसे उम्र है निकली रिश्ते बिखर गए।
हँस कर बोला तब एकांत, “आ बैठ पास होकर के शांत। मड़ा बहुत जीवन को तूने,
पल अब आया हैनिशांत। “
सपने में ही जीवन के सारे दिन गुजर गए। जैसे जैसे उम्र है निकली…..✍️
कभी कभी दुख सुख पर कितना हावी हो जाता है।सवेरे सवेरे शकरपारे बनाए मकर संक्रांति के लिए। कुछ देर पहले ही ndtv के reporter कमाल खान जी के अचानक निधन की दुखद खबर सुनी । त्योहार एक ओर रह गया है । बहुत बुरा लग रहा है। कितना अपनत्व था उनकी आवाज में । लखनऊ की गरिमामयी विनम्र भाषा के symbol थे कमाल खान जी । घर का एक सदस्य बन गए थे वो । 🙏